Date: 21/07/2025 Monday ABOUT US ADVERTISE WITH US Contact Us

अपने आस्तित्व को तरसता राष्ट्र में हरित क्रांति लाने वाला पूराना सिंदरी खाद कारखाना  

7/20/2025 4:29:32 PM IST

39
कोयलांचल लाइव डेस्क, Koylachal Live News Team
Sindri  : कभी राष्ट्रिय आकाल के समय अपनी मेहनत के आधार पर देश में हरित क्रांति देने वाली पूराना सिंदरी खाद कारखाना  आज बदली परिस्थिति में अपने आस्तित्व को बरकरार रखने की गुहार में दर दर भटक रहा है। उक्त कारखाना को देश का पहला सार्वजनिक उपक्रम होने का गौरव भी प्राप्त है। इसका उद्घाटन इस राष्ट्र के प्रथम प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने न केवल उद्घान की थी बल्कि उक्त कारखाने उनकी देन तक कहा जाता है। यह कहना है राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर यूनियन के महामंत्री ए के झा  की। उन्होंने बताया कि पंडित नेहरू ने इसे 'भारत का मंदिर' की  संज्ञा दी थी। हजारों बेरोजगार नौजवानों ने इस खाद कारखाने में नौकरी पाई। हजारों परिवार का जीवन बसर इस खाद कारखाने से चलता रहा। सिंदरी भारत में नहीं बल्कि दुनिया के मानचित्र पर सबसे प्रतिष्ठित सार्वजनिक प्रतिष्ठान रहा है। पूंजी विनिवेश के नाम पर 51 वर्ष की आयु प्राप्त होते ही तत्कालीन भाजपा सरकार ने इसे मौत की नींद सुला दी । परिणाम स्वरुप हजारों श्रमिक परिवारों को बेरोजगारी की भीषण अग्नि में जलना पड़ा। देश के सार्वजनिक प्रतिष्ठानों का यह सबसे खूबसूरत बगान सिंदरी वर्षों से अपने भाग्य पर रो रहा है। इस कारखाने को देश के सार्वजनिक प्रतिष्ठानों का यह सबसे खूबसूरत बगान सिंदरी वर्षों से अपने भाग्य पर आंसू बहाने को विवस  है। श्री झा ने बताया  कि लंबे संघर्ष के बाद पूंजीवादी सोच और नीति के तहत HURL कंपनी के द्वारा नया कारखाना स्थापित करने की शुरुआत हुई। वर्तमान में HURL कंपनी का प्रबंधन तमाम जनहितकारी योजनाओं, सामुदायिक विकास, सामाजिक सुरक्षा को नजरअंदाज कर रही है। F C I प्रबंधन द्वारा स्थापित और संचालित विद्यालयों तथा अस्पतालों को पूरी तरह से अव्यवस्थित कर दिया गया है। दूसरी ओर पूंजीपतियों, चंद बड़े ठेकेदारों के दबाव में HURL कंपनी ने सिंदरी में निर्मित आवासों को खाली कराने के लिए भय और आतंक पैदा करने की नीति का सहारा लिया है। इसके खिलाफ सिंदरी के हर एक नागरिक संगठित है तथा एकता बद्ध है। अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने के लिए प्रबंधन ने उन्हें मजबूर कर दिया है। इस कारखाना को शीर्ष तक पहुंचाने में स्वभाविक रूप से  इस कारखाने के कर्मियों का भी योगदान होगा। नई प्रबंधन को चाहिए कि पूराने तमाम विवादों को भुलाकर व रजनीतिक प्रतिद्वंदिता को परे रखकर कम से कम राष्ट्र की प्रतिष्ठा समझ इस  पहली सार्वजनिक उपक्रम को बचाने की कोशिश करे।      
 
 
द्वारा प्रतिष्ठित मजदूर इंटक नेता  ए के झा