Date: 15/10/2025 Wednesday ABOUT US ADVERTISE WITH US Contact Us

गठबंधनों को है अधिसूचना का इंतजार है अब तक, नहीं जारी हुई प्रत्याशियों की सूचियां
 
 
बिहार विधानसभा चुनाव पर वातावरण गर्म , अब तक सिर्फ वोट कटवे दल की सूची ही जारी  
 

10/10/2025 2:54:10 PM IST

42
कोयलांचल लाइव डेस्क, Koylachal Live News Team
Patna : बिहार विधानसभा चुनाव के लिए प्रथम चरण के मतदान की अधिसूचना कल जारी होने वाली है । लेकिन अब तक बिहार के राजनीतिक गठबंधन के दलों ने अपनी प्रत्याशियों की सूची जारी नहीं की है । वजह यह बताया जा रही है कि लिस्ट जारी करने के बाद एक बार भयानक ढंग से पार्टी के अंदर तोड़फोड़ होने की संभावना है। इसी बीच सरकार बनने पर क्या करेंगे इसके लिए नेताओं द्वारा बड़े-बड़े सब्ज-बाग दिखाए जा रहे हैं ।राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के तेजस्वी यादव ने तो मुख्यमंत्री का सपना देखते हुए यहां तक कह दी है कि अगर तेजस्वी की सरकार बनी तो हर परिवार में एक सरकारी नौकरी देने का काम करेंगे । ऐसा लगता है कि चुनाव जीतने के बाद अगर वास्तव में वह मुख्यमंत्री बने तो सरकारी नौकरी की हवा निकाल देंगे। विश्वस्त सूत्रों का मानना है कि मौजूदा दौर में जितनी सरकारी नौकरियां हैं उसके अतिरिक्त में 15 गुना सरकारी नौकरियां सृजीत करनी होगी क्या ऐसा करने की क्षमता वह रखते हैं ? अगर नहीं तो जनता के सम्मान के साथ खिलवाड़ करने का उन्हें क्या अधिकार है ? बिहार में लालू सरकार में क्या हुआ था यह बिहार की जनता अब तक नहीं भूली ,स्थिति यह थी कि लालू सरकार में राजधानी पटना शहर में खुल्ले आम घूमना तक संभव नहीं थी। रंगदारी भ्रष्टाचार तो उत्कर्ष पर थी ।लालू सरकार में पशुपालन घोटाला इसका सबसे बड़ा उदाहरण है जब गाय भैंस को भी स्कूटर और मोटरसाइकिल पर ढोने की बात सामने आई थी। तेजस्वी उसी सरकार के मूल से निकले हुए जीव है। जिसकी सजा लालू प्रसाद अब तक भोग रहे हैं । वह समय था जब बिहार की राजधानी पटना में शहर में खुलेआम निकलने तक मुश्किल था रंगदारी और भ्रष्टाचार उत्कर्ष पर थे और जनता त्राहिमाम कर रही थी । उस अंधा राज में क्या-क्या हुआ सिर्फ बताने से ही बिहार की प्रतिष्ठा पर प्रहार होता है। वर्तमान बिहार में विकास और अमन चैन के बारे में एक आम आदमी भी बताने में सक्षम है फिर सिर्फ जाति के आधार पर किसी राज्य को तथा उसके आवाम को तबाह करने और विकास से अवरोध करने का मतदाता को क्या अधिकार है । सरकारी नौकरी की मजा लालू परिवार देखा है देख रहा है और भविष्य में भी देखने की क्षमता रखता है । लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति को दो जून की रोटी जुटाना तक मुश्किल है । कपड़ा और मकान जैसी मूलभूत सुविधाएं तो उसके बाद आती है। ठीक है कि बिहार में जातिगत राजनीति की हवा बहती है लेकिन इतिहास पर चर्चा दौड़ मे  लालू सरकार के समय कितना यादव और मुस्लिम को फायदा हुआ जिसका लाभ अब तक उन्हें मिल रहा है और आगे भी मिलने के आसार है ? एक कहावत है "नया मुल्ला प्याज ज्यादे खाता है " तेजस्वी यादव अपनी योग्यता और राजनीतिक अनुभव बताएं कि जनता  किस भीड़ से उठकर आयें हैं और खासकर उनकी राजनीतिक उत्पत्ति कैसे हुई है? और  उन्होंने एंट्री कैसे ली ? अगर वह लालू के बेटे नहीं होते तो क्या उनकी यही महत्व उनकी रहती ? स्थिति यह भी है कि हमारे संविधान में मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री बनने के लिए कोई योग्यता का निर्धारण नहीं है। लेकिन दायित्व संभालने के बाद इसकी महत्वपूर्ण आवश्यकता पड़ती  है। यह वह जरुर महसूस करते होंगे जो कि योग्यता न रहने की स्थिति में पढ़े लिखे पदाधिकारी का नियंत्रण रखते हैं । ऐसे में उनकी यह कमी जरूर खलती होगी ।भले हीं वह शर्म से इसे सार्वजनिक नहीं करें। इस बार बिहार विधानसभा चुनाव मतदाताओं के लिए काफी महत्वपूर्ण है ,उन्हें फैसले लेने होंगे कि वह क्या चाहते हैं विकास या जातिगत आधार पर अपने जाति के मंत्री और पदाधिकारी ? एक बात यह भी है कि अब तक जिन राजनीतिक दलों ने प्रत्याशियों की सूची निकाल दी है वह या तो छुटभैयें  है या फिर अभी राजनीति में नई पार्टी लेकर भाग्य आजमा रहे हैं। जन सुराज पार्टी या आम आदमी पार्टी का बिहार विधानसभा के राजनीति में कितना महत्व है यह किसी को बताने की जरूरत नहीं, यह समझने की जरूरत है। अगर प्रशांत किशोर को उनकी मनचाही इच्छा पूरी हो जाती तो जदयू से हटकर खुद की पार्टी नहीं बनातें , और आम आदमी पार्टी की उत्पत्ति दिल्ली से लेकर पंजाब तक ही सीमित है । बिहार और बंगाल में उनका कोई वजूद नहीं । सत्ताधारी भाजपा जदयू के प्रत्याशियों की कुछ नाम मैदान में ठोस रूप में उछल रहे हैं लेकिन जब तक उन पर पार्टी की मोहर नहीं लगती तब तक सिर्फ अनुमान और चर्चा पर ही रहेंगे। और इस आधार पर सिर्फ और सिर्फ अनुमान ही लगायें जा सकते हैं। रही बात लोजपा (रामविलास) की बात तो स्वर्गीय रामविलास पासवान एक कदावर राजनीतिक नेता थे जिनकी उपलब्धियां भरी पड़ी है ।आज चिराग पासवान सिर्फ उसे भूनाते हुए बिहार में राजनीति कर रहे हैं सूत्रों का यह भी मानना है कि एनडीए उन्हें जितनी सीट दे रही है उस पर तैयार भी है सिर्फ एमएलसी और राज्यसभा पद को लेकर दबाव बनाए हुए हैं। और मंत्री जीतन राम मांझी का कहना अपनी जगह पर वाजिद भी है कि अगर उनके दल को मान्यता ही नहीं रहेगी तो राजनीति क्या करेंगे ? और कब तक करेंगे ? इसलिए उन्हें वाजिब सीट चाहिए जबकि इस मामले में सिर्फ उपेंद्र कुशवाहा अभी तक चुपचाप है। ऐसा लगता है कि उन्हें उसे इशारे में फायदे की बात बता दी गई है। इस बारे में मीडिया को कुछ कहना उनके लिए ज्यादा खतरनाक होगा क्योंकि अगर वह सही नहीं निकला तो फेल हो जाने पर मीडिया पर यह तो तोहमत लगती है कि उन्होंने अपना एग्जिट पोल यह दिया था और उनका अनुमान यह था । ले देकर स्थिति यही है की चुनाव सिर पर है और सूची अब तक जारी नहीं हुई सिर्फ अनुमान के आधार पर सिर्फ तोतले बाजी भर हो रही है। अर्थात सत्ता में कुर्सी कौन संभालेगा यह अब तक अनुमान और चर्चा तक ही सीमित है। वर्तमान में बिहार की एनडीए गठबंधन की उपलब्धियां विकास के आधार पर सामने है और दूसरी तरफ बिहार की सत्ता में लालू का शासन जिसको सोच कर भी दिल दहल जाता है।
 
उमेश तिवारी कोयलांचल लाइव डेस्क