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आदिवासियों सहित पूरे झारखंड की पहचान रहे दिशोम गुरू शिबू सोरेन
 

8/5/2025 4:36:34 PM IST

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कोयलांचल लाइव डेस्क, Koylachal Live News Team
Dhanbad : अविभाजित बिहार के समय से ही आदिवासी समाज के एक बड़े नेता के रूप में शिबू सोरेन कभी भी पहचान के गुलाम नहीं रहे। झारखंड की भूमि पर दलित पिछड़ों और निम्न वर्गीय वर्ग लोगों के लिए उन्होंने एक लंबा संघर्ष किया। इस दौरान कदम कदम पर उन्हें विरोध का भी सामना करना पड़ा। देश की एक नामी हस्ती पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें सबसे पहले राष्ट्रीय पटल पर लाने की कोशिश की थी। हालांकि संबंधित मामले में उन पर विपक्षियों द्वारा लगातार आलोचना करते हुए कई आरोप भी  लगाए गए लेकिन कभी भी उन्होंने ऐसे आरोपों की परवाह नहीं की। यही वजह है कि आदिवासी बाहुल्य झारखंड के आदिवासियों ने उन्हें दिशोम गुरू तक की संज्ञा दी। राजनीति में उनका प्रवेश करने वाले धनबाद की एक महान सांसद   स्व. ए. के राय की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही। उन्होंने धनबाद कोयलांचल से राजनीतिक नेता पैदा कियें। जिसमें विनोद बिहारी महतो, आनंद महतो, गुरूदास चटर्जी सहित कई के नाम शामिल है। यहां यह बताना जरूरी होगा स्व ए के  राय एक ऐसे सांसद थे जिन्होंने राजनीति के आगे कभी भी अपनी आर्थिक चिंता सामने नहीं रखी राष्ट्र के लिए समर्पित उन्होंने संसद में अपनी पेंशन तक नहीं लेकर एक मिसाल छोड़ी है। शिबू सोरेन उनके एक शिष्य हुआ करते थें। ए के  राय एक अच्छे अभियंता और लेखक हुआ करते थे उन्होंने आधिकारिक पद से इस्तीफा देकर राजनीति में प्रवेश किया था। शिबू सोरेन में उन्हें एक संघर्षशील व्यक्तित्व दिखाई पड़ा। प्रतिक्रिया में उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन आदिवासी बाहुल्य झारखंड को उसके अधिकार दिलाने के लिए की थी। इसका एक अलग महत्वपूर्ण एजेंडा अलग झारखंड राज्य भी रहा। पर राज्य गठन के बाद संबंधित दल की चाभी  शिबू सोरेन ने अपने हाथ ले ली। इस पार्टी को अपनी पार्टी बनाकर उन्होंने झारखंड को विकसित राज्य बनाने के उद्देश्य से अपनी लड़ाई जारी रखी और उसे अंजाम तक पहुंचाया  भी । इस दौरान वह राज्य के मुख्यमंत्री सहित केंद्रीय प्रतिनिधित्व में भी अपनी भूमिका निभाई । उम्र की तकाजा सहित परिवार की आपसी विवाद के कारण उन्होंने अपने पुत्र हेमंत सोरेन को न केवल पार्टी का कमान दिया बल्कि उत्तराधिकारी बनाकर मुख्यमंत्री भी बनाया। इस दौरान शिबू सोरेन पर उम्र हावी होती रही और बीमारियों ने  भी उन्हें अपने चपेट में ले लिया।  इस दौरान किडनी की रोग से पीड़ित होकर वह अपनी जिंदगी की अंतिम घड़ी गिनने लगे । इस दौरान पुत्र मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी उनकी भरपूर मदद की और 4  अगस्त 2025  को उनकी अंतिम सांस ले ली । स्थिति यह कि अपनी पूरे कार्यकाल में उन्होंने पूरे झारखंड में ही नहीं राष्ट्रीय पटल पर एक अहम पहचान बनाई है। स्थिति यह की मृत्यु के बाद उन्हें पद और पहचान के जरिए राजकीय सम्मान मिला राष्ट्र की महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित तमाम केंद्रीय और विपक्ष नेताओं ने उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी है। इस प्रकार 11 जनवरी 1944 से लेकर 4 अगस्त 2025 तक उन्होंने अपनी जीवन का जो वृत्त चित्र तैयार किया है कम से कम झारखंड में तो उसकी कोई काट नहीं  है। अपनी संघर्षशील जीवन के लिए झारखंड के यह दिशोम गुरु  शिबू सोरेन हमेशा याद किये जाते रहेंगे। 
 
 
उमेश तिवारी कोयलांचल लाइव डेस्क