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जोखिम भरा है बिहार के किसी भी गठबंधन में प्रत्याशी चयन का निर्णय लेना
 
एनडीए से अधिक मत्थापच्ची  है इंडिया गठबंधन में

9/23/2025 4:35:46 PM IST

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कोयलांचल लाइव डेस्क, Koylachal Live News Team
Dhanbad : बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा की तिथि जैसे-जैसे नजदीक आ रही है चुनाव मैदान में उतरने वाली दोनों राजनीतिक दल के गठबंधन में उधम मच गई है। प्रत्याशी चयन के मुद्दे पर सीट मैट्रिक्स को लेकर तालमेल गड़बड़ा रहा है।जोखिम भरा है किसी भी गठबंधन में प्रत्याशी चयन का निर्णय लेना। 20 साल से बिहार में लगातार सत्ता में जमा रहने वाली जदयू को भी तिथि घोषणा से पहले प्रत्याशी का संकट आ गया है अर्थात किसे सीट दिया जाय इसको लेकर असमंजस की स्थिति है कई जगह तो जदयू ने सही प्रत्याशी नहीं मिलने की स्थिति में सीट भाजपा के जिम्मे में लगा देना चाह रही है। यह स्थिति एनडीए के अन्य घटक दलों में भी है क्योंकि बिहार में विधानसभा चुनाव लड़ने की राजनीति जातिगत आधार पर होती है। इस बात से कभी भी इनकार नहीं किया जा सकता। एनडीए में चुनाव लड़ने की ज्यादा मशक्कत प्रत्याशी चयन को ही लेकर हीं है। क्योंकि चुनाव लड़ने के लिए यह तय हुआ है की जॉइंट मेनिफेस्टो जारी किया जाएगा अर्थात इसमें तनिक भी गड़बड़ी हुई तो  दोष केवल भाजपा को नहीं सभी घटक दलों को समान रूप से होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित साह की संयुक्त सहमति से यह तय हुआ है कि एनडीए का कोई भी घटक दल अपना सेपरेट अर्थात व्यक्तिगत मेनिफेस्टो जारी नहीं करेगा क्योंकि चुनाव के बाद कार्य क्षेत्र के मैदान में सभी को नीतिगत रूप से एक ढंग से काम करना है इसलिए भाजपा की सोच है कि मैं मेनिफेस्टो भी एक होनी चाहिए। भाजपा की यह चाल काफी सोची समझी और दूरगामी परिणाम देने वाली है। अपने 20 साल के शासनकाल में बिहार की जदयू सरकार ने विकास की तमाम जो भी कार्य किए हैं वह चुनाव के समय चिन्हाड़ चिन्हाड़ कर बोल रही है। अर्थात अगर मतदान विकास के नाम पर हुई तो जदयू कहीं से भी पिछड़ने की स्थिति में नहीं है। और इसी का भरपूर फायदा इस बार के चुनाव में भाजपा समर्थित एनडीए गठबंधन उठा लेने के लिए उतारू है। एनडीए गठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर कोई जंग होने की आसार अब तक नहीं है। हालांकि अंतिम समय में क्या होगा इसके बारे में भी दावे के साथ कुछ भी कहना मौजूदा दौर में संभव नहीं लेकिन इतना तय है कि विपक्षी इंडिया गठबंधन की तुलना में एनडीए गठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर घमासान अपेक्षाकृत कम है। रही चिराग पासवान की पार्टी लोजपा (रामविलास) तो उसको नियंत्रण में रखने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद सीट मैट्रिक्स बैठाने के लिए सक्षम है। और पिछले दिनों एक चुनावी सभा में स्वयं सांसद सह केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने स्पष्ट कर दिया है कि एनडीए से अलग कुछ करने की पक्ष में वह लंबे समय तक नहीं है। बिहार की राजनीति से उपजे लोजपा (राम विलास) को अभी बिहार के साथ-साथ केंद्र की राजनीति में भी ढंग से बने रहना है इसलिए सीट बंटवारे के मामले में किसी प्रकार की नादानी करने के पक्ष में वह नहीं होगी ऐसा विशेषज्ञों का मानना है। दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन में मुख्य घटक दल राजद और कांग्रेस में सीट तथा मुख्यमंत्री को लेकर आपस में ठन गई है। अर्थात इंडिया गठबंधन में ठीक-ठाक नहीं चल रहा है जिसका नतीजा निश्चित रूप से आगामी विधान सभा चुनाव पर पड़ना तय है। इस प्रकार सीट बंटवारे की मस्कत एनडीए से अधिक इंडिया गठबंधन को लेकर है यह सब चुनाव की तिथि 
घोषणा के पहले की स्थिति है। इससे आप सोच सकते हैं की कि जहां चुनाव की तिथि घोषणा से पहले ही मारपीट की यह स्थिति है तो चुनाव के दौरान क्या होगा ? एनडीए के पास तो चुनाव में जनता को समझने के लिए विकास के बहुत से पैमाने हैं पर इंडिया गठबंधन क्या समझाएगा लालू राबड़ी शासन में जो कुशासन रहा उसके बारे में तो सोच कर भी बिहार वासियों का इनाम डगमगा जाता है। अर्थात लालू राज में बिहार और नीतीश राज में बिहार की तुलनात्मक स्थिति बहुत कुछ बता देने के लिए पर्याप्त है। तिथि घोषणा होने तक सीट बंटवारे को लेकर एनडीए में क्या होता है इस पर अभी पैनी निकाल मीडिया की लगी हुई है। यह कह सकते हैं की राजनीतिक भविष्य को लेकर एनडीए के तमाम घटक दल अपनी भविष्य को लेकर अपने-अपने ढंग से सोच रखते हैं और समझौता के समय वह कहां तक कारगर होती है यह तो दावे के साथ कुछ भी अनुमान लगाना सही नहीं होगा।
 
उमेश तिवारी कोयलांचल लाइव डेस्क