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बिहार में विधानसभा चुनाव पर तिथि का संकेत देकर चुनाव आयोग ने बढ़ा दी घटक दलों की दिल की धड़कनें

10/5/2025 4:04:39 PM IST

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कोयलांचल लाइव डेस्क, Koylachal Live News Team
Dhanbad : मुख्य चुनाव आयुक्त ने बिहार में आकर राजनीतिक दलों के साथ बैठक के बाद मीडिया से जैसे ही चुनाव की तिथि की सीमा का ऐलान किया बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर सीट बंटवारे में एनडीए के अंदर चहलकदमी  और बढ़ गई है। सीट बंटवारे के मुद्दे पर एनडीए के अंदर घटक दलों की दावेदारी और तेज हो गई है। इस दौरान लोजपा  (राम विलास) ने सीमा से ऊपर उठकर मुख्य घटक दल भाजपा के समक्ष मांग में सीट  की संख्या बढ़कर भाजपा की मुश्किलें और बढ़ा दी है। ऐसे भी जदयू के साथ गठबंधन में भाजपा का कोई फर्क पड़े या ना पड़े पर भाजपा  पर लोजपा (रामविलास )ने मुश्किलें बढ़ा दी है। हालांकि वैसे अब तक एनडीए ने चुनाव को सीटें स्पष्ट नहीं की है। वैसे  चिराग पासवान को बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर सीट की मांग रखने से पहले अपनी पुरानी इतिहास को कम से कम  एक बार जरूर नजर दौड़ा लेनी  चाहिए।  पिछले चुनाव में उन्होंने एनडीए गठबंधन से नाता तोड़कर जदयू की मुश्किलें बढ़ा दी थी या यूं कहे कि उन्होंने कई जगह जदयू की जीत में पेंच फंसा दी थी। शायद यही वजह रही  कि भरपूर तैयारी रहने के बाद भी जदयू पिछले चुनाव में बिहार में अपेक्षित सीट नहीं ला सकी। राजनीतिक पारखियों का मानना है कि  चिराग पासवान का लक्ष्य शायद मुख्यमंत्री बना नहीं बल्कि अपने बहनोई का जमुई में अप्रत्याशित जीत दिला कर उनका  राजनीतिक कद बढ़ाने की है। लेकिन इसमें वह कितना सफल होंगे अभी तक या परिदृश्य साफ नहीं है। लेकिब ऐसा करके वह अपने हीं घटक दल जीतन राम मांझी के प्रत्याशी को चोट जरूर पहुंचाएंगे  इतना तय है । ऐसा करके वे अपने हीं घटक दल को नुकशान जरूर पहुंचा देंगे जो कि अपने हीं घटक दल से बेमानी होगी। लेकिन यह उनकी गठबंधन की टीम लीडर भाजपा के लिए मुश्किल भरा कदम होगी पर इससे वह स्वार्थवश एनडीए नहीं भाजपा का नुकशान करेंगे ऐसा कहके उन्होंने भाजपा चिंता में जरूर डाल दिया है कि केंद्र में एनडीए गठबंधन सेवा से सहमत है बिहार से नहीं। अर्थात उनका यह कहने का तात्पर्य मीडिया के जरिये  बिहार चुनाव पर चिराग पासवान कह्रीं राजनीति के जरिये भाजपा को परेशान करना तो नहीं ? उनकी यह चाल तो हनुमान वाली नहीं क्योंकि रामायण में हनुमान ने सिर्फ और सिर्फ राम भक्ति की थी। ऐसे में चिराग पासवान को मोदी का हनुमान मानना सिर्फ कथनी की बात है करनी की नहीं। लेकिन भाजपा एक ऐसी राष्ट्रीय दल है जिसे कभी भी घटा या नफा की परवाह नहीं रहती। और ना ही भाजपा मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री का चेहरा रखकर चुनाव लड़ने में विश्वास रखती है। क्योंकि भाजपा को यह मालूम है कि उसे बिहार में जितना सीट लाना है वह किसी भी स्थिति में आ जाएगी। रही सरकार बनाने की बात तो भाजपा फ़िल्हाल  बिहार में गठबंधन को नुकसान पहुंचा कर कोई समझौता करने के पक्ष में नहीं है। क्योंकि विभिन्न प्रांतीय चुनाव में भाजपा ने बिना चेहरा के ही मुख्यमंत्री बनाकर और पद संचालित कवाके अपनी दिलेरी दिखा दिया है कि उसकी राजनीति कभी भी कोई चेहरा को रखकर नहीं होती। इतना हीं नहीं एनडीए के घटक दल भी अच्छी तरह जानते हैं की गठबंधन से नाता तोड़कर उनका हस्र होगा और मतदाताओं के बीच वह अपनी सफलता कितनी दिखा पाएंगे। ऐसे में जो भी सीट मिल रहा  है उसे ही पर्याप्त मानकर फिल्हाल  में गठबंधन से बाहर निकल  कर राजनीति करने के पक्ष में नहीं है। और यह भी स्पष्ट है कि भाजपा चाह कर भी घटक दलों को अपेक्षा से अधिक सीट नहीं दे सकती। क्योंकि ऐसा करने से भाजपा के अंदर खुद ही अंदरुनी कलह बढ़ जाएगी। जिसे उकसाने की पक्ष में वह बिल्कुल ही नहीं है। ले देकर अब तक की स्थिति यही है कि सीट बंटवारे पर कथित नाटक के जरिए बिहार में एनडीए के घटक दलों में आपसी उठापटक बढ़ी  है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि वह  इतना अधिक बढ़ी  है कि इसका परिणाम के जरिये  लाभ विपक्षी इंडिया गठबंधन को मिल जाएगी। जानकार सूत्रों का मानना है की सीट बंटवारे पर भाजपा की मुश्किलें बढ़ी  जरूर है लेकिन उससे पार्टी की चिंता पर कोई असर नहीं आ रही है। अर्थात अब तक की समीक्षा यही है कि बिहार में एक बार फिर से नीतीश कुमार फिर से  मुख्यमंत्री के रूप में विद्यमान हो सकते हैं। हां इतना जरूर है कि दूसरी ओर  सीट बंटवारे के मुद्दे पर इंडिया गठबंधन में तेजस्वी के चेहरे पर कांग्रेस अपना विश्वास नहीं जुटा पा रही है। जबकि इंडिया गठबंधन में कम सीट लाने के बाद भी कांग्रेस एक राष्ट्रीय दल है। इसलिए उसके अनुमान के बारे में और अनुमान लगाना राजनीति करना  आसान नहीं। राजनीतिक विश्लेषक  यह भी कह रहें  है की इंडिया गठबंधन की  सरकार तो नहीं बनेगी। लेकिन एनडीए गठबंधन में अभी भी   मुख्यमंत्री का चेहरा नीतीश को छोड़ कोई दूसरा नजर नहीं आता। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि लोजपा (रामविलास) का लक्ष्य मुख्यमंत्री बनना फिल्हाल नहीं लेकिन। यह कोशिश जरूर है कि उपमुख्यमंत्री उनके पार्टी का हो ताकि बिहार विधानसभा चुनाव के जरिए व केंद्र सरकार को एहसास दिला सके।  यहां चिराग पासवान नरेंद्र मोदी का हनुमान होकर भी पूरी तरह से भक्त बनकर नहीं रहना चाहते बल्कि उनका अपेक्षित आशीर्वाद भी चाहते हैं। अब सवाल है कि भाजपा मौजूदा स्थिति में वह चिराग पासवान को अपेक्षित सीट  देकर अपने अन्य घटक दलों के साथ खुद की खटास लेने के पक्ष में नहीं। क्योंकि अगर सीट बंटवारे में ज्यादा गड़बड़ किया तो हो सकता  है कि बिहार में एनडीए गठबंधन घटक दल के रूप में लोजपा ( रामविलास) के राजनीतिक महत्वाकांक्षा पर हल्की असर पड़ जाय।  यहां  चिराग पासवान केंद्रीय राजनीति से ज्यादा दिलचस्प बिहार की राजनीति में ले  रहे हैं। वैसे अंतिम समय तक बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर चुनावी परिणाम का ऊंट किस करवट बैठेगा ,अभी फिलहाल सिर्फ अनुमान लगाया जा सकता है।
 
 
उमेश तिवारी कोयलांचल लाइव डेस्क